Monday, July 6, 2009

रेत भरी है इन ऑंखों में/ डॉ. बशीर बद्र


रेत भरी है इन ऑंखों में, आंसू से तुम धो लेना

कोई सूखा पेड मिले तो उस से लिपट के रो लेना



उस के बाद तनहा हो जैसे जंगल का रस्ता

जो भी तुम से प्यार से बोले साथ उसी के हो लेना



कुछ तो रेत की प्यास बुझाओ, जनम जनम की प्यासी है

साहिल पर चलने से पहले अपने पांव भिगो लेना



रोते क्यों हो दिल वालों की किस्मत ऐसी होती है

सारी रात यूं ही जागोगे दिन निकले तो सो लेना



मै ने दरिया से सीखी है पानी की पर्दादारी

ऊपर ऊपर हंसते रहना, गहराई में रो लेना




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