कौन पांडव,
टेढ़ा सवाल है|
दोनों ओर शकुनि
का फैला
कूटजाल है|
धर्मराज ने छोड़ी नहीं
जुए की लत है|
हर पंचायत में
पांचाली
अपमानित है|
बिना कृष्ण के
आज
महाभारत होना है,
कोई राजा बने,
रंक को तो रोना है|
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
कई दिनो से सोच रही थी, बचपन को मैं खोज रही थी .
निश्चल, खिलखिलाता बचपन, चिंताओ से परे वो बचपन.
वो मिट्टी के ढेर में घर बनाना, गीले हाथ फ्रॉक को पोंछना .
दादी से खूब कहानी सुनना, रजाइयों में लुका छिपी खेलना.
माँ कितनी अच्छी चीजें बनाती, डिब्बो में फिर इधर उधर छुपाती,
सोते बड़े जब आती दोपहर, पहुँच जाते तब हम रसोईघर .
डिब्बा मिलता, शोर मच जाता, मानो कोई किला हो जीता,
खो जाते फिर मीठे स्वाद में, मिल कर जीत की खुशी मनाते.
मूँछो वाले अंकल क़ा डर, बहुत सारे होमेवर्क क़ा डर,
छुट्टियों के बाद स्कूल जाने क़ा डर, दादाजी के गुस्से क़ा डर.
पहली बारिश में छत पर फुदकना, छींकते हुएं फिर नीचे आना .
गर्मियों में चढ़ कर पेड़ पर, लटक - लटक कर नीचे कूदना.
दौड़ कर गिरते, घुटने छीलते, रोते हुए घर को आते,
डेटॉल के फिर फाहे आते, माँ के आँसू समझ ना आतें.
बचपन को मैं याद कर रही थी, बड़ी क्यों हुई सोच रही थी.
ठन्न ….. ठन ….ठन…. आवाज़ आई अचानक कोई,
मानो जागी मैं सपनो से , उठ खड़ी और भागी रसोई …..
देखा तो डिब्बा और केक फर्श पर पड़ा था….
कुछ मुँह में कुछ हाथ में लिए मेरा बेटा खड़ा था .
हाथ और माथे पर, चिपके थे कुछ स्टीकर रंग बिरंगे….
बंधी बेल्ट थी कमर पे,खोस रखे थे जिसमे कुछ डंडे
किचन काऊंटर पर वो खड़ा था…..
क्यां मैं बोलूँगी, देख रहा था .
डाँटू ये मैं सोच रही थी…
पर होंठो पे मुस्कान, बरबस आ रही थी .
देख कर वो नीचे कूदा, मुझसे लिपट कर फिर वो बोला ….
मम्मा, मैं जासूस बना था …. केक छुपा था, उसे ढूंढ रहा था .
Aj aakhaan Waris Shah noon kidre kabraan vichon bol
Te uTh kitaab-e-ishq daa koi aglaa warkaa phol
Ik royee see dhee Punjab dee toon likh likh maare wain
Aj lakaan dheeyaan rondeeyan tainun Waris Shah noon kehan
UTh daradmandaan deyaa dardeeyaa aj tak aapnaa Punjab
Aj bele laashaan viCheeyaan te lahu dee bharee Chanaab
Aj dharti te lahu vassyaa te kabraan pahiyaan chon
Te preet deeyaan shahzaadeeyaan aj vich majaare ron
Aj sabhe Qaido ban gaye husan ishq de chor
Te aj kithon lehavaan lab ke main Warish Shah ik hor
Aj aakhaan Waris Shah noon kidre kabraan vichon bol
Te uTh kitaab-e-ishq daa koi aglaa warkaa phol
Hai kabhi woh cheekhta
aur sisakta hai koi
chupke chupke mere andar
Rota rehta hai koi.
Aag seeney mein lagi aur
phir dhuaan sa ban gayi
meri aankhon mein diya sa
jalta rehta ha koi.
Kis qadar khamosh hoon
par kis qadar hoon muztarib
aandhiyan chalti hein
aur socha karta hai koi.
koun jane mere dil mein
kaunsa lava hai……
geeli rakh ki tarah
yeh dil lagta hai koyi.
Khud se begane huye
aur khushi bhi jati rahi
aur isee alam mein khud ko
dhoonda karta hai koi
Sar se le ker paon tak
khud ko jala dala hai aur
bas dhuaan sa ban gaya
aur urta phirta hai koi.
बरसों पहले नानी ने माँ से कहा था तुम फलांगना चाहती हो पहाड़ झाँकना चाहती हो बादलों के पार पाना चाहती हो सागर के पानियों की थाह मुई! तुझे कैसे समझाऊँ ? आकाश से लटके रहते हैं कुछ उक़ाब पलक झपकते ही पंजों में दबोच ले जाएँगे पहाड़ों की खोहों में छिपे कुछ जिन्न सूँघ लेंगे तुम्हारे जिस्म की ख़ुश्बू. सागर के पानियों में बैठे हैं कुछ घड़ियाल. सच तो यह है कि पानी , पहाड़ आकाश किछ भी नहीं है औरत के लिए. उसे झूलने हैं केवल इन्द्रधनुषी झूले. माँ ने अपनी नन्हीं -सी छाती में सहेज लिया था यह कड़वा-सा सच. बरसों बाद माँ ने अपनी बेटी से कहा तुझे फलाँगने हैं पहाड़ तुझे जाना है बादलों के पार तुझे पानी है पानियों की थाह तुझे नहीं झूलने इन्द्रधनुषी झूले. तुझे लिखना है आकाश की छाती पर अपने तर्जनी से एक इतिहास तुझे पालना है सागर की कोख में अनन्त विश्वास तुझे फलाँगना है हिमालय का अभिमान तुझे तोड़नी है मिथक औरत की हर सफलता का रास्ता जिस्म से हो कर नहीं गुज़रता. |