Monday, May 18, 2009

किताब

हैरत है।
अक्षर नहीं हैं आज किताब पर

कहाँ चले गए अक्षर
एक साथ अचानक?

सबेरे सबेरे
काले बादल उठ रहे हैं चारों ओर से
मैली बोरियां ओढ़कर सड़क की पेटियों पर
गंदगी के पास सो रहे हैं बच्चे
हस्पताल के बाहर सड़क में
भयानक रोग से मर रही है एक युवती
पैबन्द लगे मैले कपड़ों में
हिमाल में ठंड से बचने की प्रयास में कुली
एक और प्रहर के भोजन के बदले
खुदको बेच रहे हैं लोग ।

मैं एक एक करके सोच रहा हूँ सब दृश्य
चेतना को जमकर कोड़े मारते हुए,
खट्टा होते हुए, पकते हुए
खो रहा हूँ खुद को अनुभूति के जंगल में ।

कितना पढूँ ? बारबार सिर्फ किताब
समय को टुकडों में फाड़कर
मैं आज दुःख और लोगों के जीवन को पढूंगा ।

अक्षर नहीं हैं किताब पर आज।;;;;;;;;;;

8 comments:

  1. bahuk achi line apne likhi hai. blog jagat me apka swagat hai. meri shubhkaamnaye svikaar karen.
    jai hind.
    Prabal Pratap Singh

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  2. हैरत है।
    अक्षर नहीं हैं
    आज किताब पर

    कहाँ चले गए अक्षर
    एक साथ अचानक?
    जितनी अच्छी शुरूआत है-कविता आगे उतनी नहीं निभ सकी इन्ही पंक्तियों को इसी पृष्ट भूमि में आगे बढाएं ,क्माल हो जाएगा
    हैरत है।
    अक्षर नहीं हैं आज किताब पर

    कहाँ चले गए अक्षर
    एक साथ अचानक?हैरत है।
    अक्षर नहीं हैं आज किताब पर

    कहाँ चले गए अक्षर
    एक साथ अचानक?http://gazalkbahane.blogspot.com/
    कम से कम दो गज़ल [वज्न सहित] हर सप्ताह
    http:/katha-kavita.blogspot.com/
    दो छंद मुक्त कविता हर सप्ताह कभी-कभी लघु-कथा या कथा का छौंक भी मिलेगा
    सस्नेह
    श्यामसखा‘श्याम

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  3. hummm...achchi soch hai umeed hai ase hi aapke blog par aage bhi padne ko milega

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  5. किताबें और उनमें छपे अक्षर सिर्फ और सिर्फ उन मनुष्य़ की कल्पना की उड़ान है और कुछ नहीं..और ये विचार आते है जीवन के तरह तरह रुप देखकर...यानी जीवन के तजुर्बे से

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