Saturday, August 8, 2009

कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया/फ़ैज़ अहमद फ़ैज़


वो लोग बहुत ख़ुशक़िस्मत थे
जो इश्क़ को काम समझते थे
या काम से आशिक़ी करते थे
हम जीते जी मसरूफ़ रहे
कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया
काम इश्क़ के आड़े आता रहा
और इश्क़ से काम उलझता रहा
फिर आख़िर तंग आकर हम ने
दोनों को अधूरा छोड़ दिया....

दोनों को अधूरा छोड़ दिया....



Wo log bahut khushkismat the,
Jo ishq ko kaam samajhte the,
Ya kaam se ashiqi karte the,
Ham jeete jee masruf rahe,
Kuchh ishq kiya kuchh kaam kiya,
Kaam ishq ke aade aata raha,
Aur ishq se kaam ulajhta raha,
Phir aakhir tang aakar ham ne,
Donon ko adhura chhod diya....

Donon ko adhura chhod diya....

सफ़र में मुश्किलें आये तो जुर्रत और बढती है

सफ़र में मुश्किलें आये तो जुर्रत और बढती है
कोई जब रस्ता रोके तो हिम्मत और बढती है
मेरी कमजोरिओं पे जब कोई तनकीद करता है ,
वो दुश्मन क्यूँ न हो उस से मोहब्बत और बढती है
अगर बिकने पे आ जाओ तो घट जाते है दाम अक्सर,
न बिकने का इरादा हो तो कीमत और बढती है !

सुबह दम जैसे तवायफ का बदन दुखता है/मुनव्वर राना


झूठ बोला था तो यूँ मेरा दहन दुखता है
सुबह दम जैसे तवायफ का बदन दुखता है

खाली मटके की शिकायत पे हमें भी दुःख है
ऐ ग्वाले, मगर अब गाय का थन दुखता है

उम्र भर सांप से शर्मिंदा रहे ये सुनकर
जब से इंसान को काटा है फन दुखता है

ज़िन्दगी तूने बहुत ज़ख्म दिए है मुझको
अब तुझे याद भी करता हूँ तो मन दुखता है

kaanch ki choorhion


Ladkiyan to kaanch ki choorhion ki tarah hoti hain,

Sambhleen rahein to shaan barh jaati hai,

Toot jayein to koi bhi,

U
nki kirchiyan samet kar,

Apne haath lahuluhan nahi karta....
.

शुक्रिया तेरा ओ जिन्दगी...!!!


शुक्रिया तेरा ओ जिन्दगी...!!!
तू नहीं जानती कि
तूने क्या किया है...लेकिन
साथ कैसे निभाया जाता है..
ये सीखने का मौका
तेरी वजह से मैंने पाया है....!!!!

जब जब भी मजबूर किया
तूने मुझे सोचने पे
इन लबों और आँखों को
साथ चलने का मौका मिला है...!!!!!

ऑंखें अपने अहसास बहा रही हैं....और
लब अपने जज्बातों पे मुस्कुरा रहे हैं...
देखनेवालों ने क्या महसूस किया वो तो
नहीं पता मुझे लेकिन...सच कहूँ...
दोनों कितनी अच्छी तरह
एक-दूसरे का साथ निभा रहे है.....!!!!!!!






Shukriya tera o zindagi...!!!
tu nahin jaanti ki
tune kya kiya hai...lekin
saath kaise nibhaya jata hai..
ye sikhne ka mauka
teri wajah se maine paya hai....!!!!
jab jab bhi majbur kiya
tune mujhe sochne pe
in labon aur ankhon ko
sath chalne ka mauka mila hai...!!!!!

ankhein apne ehsaas baha rahi hai...aur
lab apne jazbaton pe muskura rahe hain...
dekhne walon ne kya mahasus kiya wo to
nahin pata mujhe lekin...sach kahun...
donon kitni achchhi tarah
ek-dusre ka sath nibha rahe hain......!!!!!!!

दिल भी इक जिद पे अडा है किसी बच्चे की तरह


जिंदगी तूने लहू लेके दिया कुछ भी नहीं
तेरे दामन में मेरे वास्ते क्या कुछ भी नहीं
मेरे इन हाथों की चाहो तो तलाशी ले लो
मेरे हाथों में लकीरों के सिवा कुछ भी नहीं
हमने देखा है कई ऐसे खुदाओं को यहाँ
सामने जिनके वो सचमुच का खुदा कुछ भी नहीं
या खुदा अब के ये किस रंग से आई है बहार
ज़र्द ही ज़र्द है पेडों पे हरा कुछ भी नहीं
दिल भी इक जिद पे अडा है किसी बच्चे की तरह
या तो सब कुछ ही इसे चाहिए या कुछ भी नहीं.....

मगर गरीब कि जान का मुआवजा कम है/ नवाज़ देवबन्दी


वो अपने घर के दरीचों से झांकता कम है
ताल्लुकात तो अब भी है राब्ता कम है

तुम उस खामोश तबीयत पे तन्ज़ मत करना,
वो सोचता है बहुत और बोलता कम है

फिजूल तेज़ हवाओं को दोष देता है,
उसे चराग जलाने का हौसला कम है

मैं अपने बच्चों के खातिर ही जान दे देता ,
मगर गरीब कि जान का मुआवजा कम है.....

तुम कोई नाम न देना.......

जिसको जो कहना हो,
उसको वो कहने देना,
मेरी प्रीत को,
प्रीत “निधि” की रहने देना,
तुम कोई नाम न देना,

जैसा तुमने जाना था,
जैसा तुमने माना था,
प्रीत का रूप,
वैसे ही सदा, “सादा रूप ” तुम रहने देना,
तुम कोई नाम न देना.......






Jisko jo kehna ho,

usko wo kehne dena,

Meri preet ko

Preet 'Nidhi' ki rehne dena

Tum koi naam na dena,

Jaisa tumne jaana tha,

Jaisa tumne maana tha,

Preet ka roop,

Waise hi sada, "saada roop" tum rehne dena,

Tum koi naam na dena.......

बूँदें!


बूँदें!
आँखों से टपकें
मिट्टी हो जाएँ।

आग से गुज़रें
आग की नज़र हो जाएँ।

रगों में उतरें तो
लहू हो जाएँ।

या कालचक्र से निकलकर
समय की साँसों पर चलती हुई
मन की सीप में उतरें
और मोती हो जाएँ.....

सीता की परीक्षा

हर बार क्यों लक्षमण रेखा खिचती है?
हर बार क्यों अग्नि परीक्षा होती है?

जब राम ही नही है आज यहाँ?
फिर सीता की इच्छा क्यों होती है?

हर बार जब स्त्री की परीक्षा लेनी हो
वो राम का रूप क्यों धरता है?

याद रखे हर वो पुरुष
जो सीता की इच्छा रखता है
राम भी तुम, लक्षमण भी तुम और रावण भी तुम
तुम ही संरक्षक और भक्षक भी तुम

फिर सीता का दोष ही क्यों दिखता है?

जो बच गयी हर परीक्षा से वो सीता थी…
आम नारी नही…
वो भी…
दूजी परीक्षा मे, धरती मे समा गयी…

आज जब तुम, राम ना बन सकते हो
फिर सीता की परीक्षा क्यों लेते हो?

कहो ना ये कैसा अजनबीपन है..???

क्यों एक दूजे से हम
इतने बेखबर है..?
क्यों बस कहने की
खातिर सब अपने है..??
मिलते ही निगाहें,
फेर ली नजर इधर-उधर...
कहो तो ये कैसा अपनापन है...???

ना हम पूरी तरह
अपने है
ना ही इस अजनबीपन में
समर्पण है..
वफादारी निभाई हमने
किसके साथ..
कहो ना ये कैसा अजनबीपन है..???






Kyon ek duje se ham
itne bekhabar hain..?
kyon bas kehne ki
khatir sab apne hain..??
milte hi nigahen,
pher li nazar idhar-udhar. ..
kaho to ye kaisa apnapan hai...???

Na ham puri tarah
apne hain
na hi is ajanabipan mein
samarpan hai..
wafadari nibhai hamne
kiske sath..
kaho na ye kaisa ajanabipan hai..???

प्यास थी पानी था पिया ही नहीं....

चाक दामन कभी सिया ही नहीं
शिकवा कभी किया ही नहीं
प्यार उसको मज़ाक लगता है
वो प्यार जिसने कभी किया ही नहीं
मांगने वाला मांगता ही रहा
देने वाले ने कुछ दिया ही नहीं
दे रहा था मगर हिकारत से
मैं भी खुद्दार था लिया ही नहीं
मेरे मौला तेरा कहा माना
प्यास थी पानी था पिया ही नहीं....



Chaak daman kabhi siya hi nahi
Shikva kabhi kiya hi nahi
Pyar usko mazak lagta hai
Wo pyar jisne kabhi kiya hi nahi
Mangne wala mangta hi raha
Dene wale ne kuch diya hi nahi
De raha tha magar hiqarat se
Mai bhi khuddar tha liya hi nahi
Mere maula tera kaha maana
Pyas thi paani tha piya hi nahi.....

उन के बदले हुए तेवर नहीं देखे जाते...

अब छलकते हुए सागर नहीं देखे जाते
तौबा के बाद ये मंज़र नहीं देखे जाते

मस्त कर के मुझे औरों को लगा मूँह साकी
ये करम होश में रह कर नहीं देखे जाते

साथ हर एक को इस राह में चलना होगा
इश्क में रहज़न-ओ-रहबर नहीं देखे जाते

हम ने देखा है ज़माने का बदलना लेकिन
उन के बदले हुए तेवर नहीं देखे जाते...





Ab chhalakte huye sagar nahin dekhe jate
Touba ke bad ye manzar nahin dekhe jate

Mast kar ke mujhe auron ko laga munh saki
Ye karam hosh mein reh kar nahin dekhe jate

Sath har ek ko is rah mein chalna hoga
Ishk men rahajan-o-rahbar nahin dekhe jate

Ham ne dekha hai zamane ka badalna lekin
Un ke badle huye tevar nahin dekhe jate...

चले आओ....!!

चांदनी का पैराहन
पुराना हो चला है
घिस गया है
रंग भी जा चुका है
कितनी ही रातों
और दिनों को
तड़प के अलाव में
डाल चुकी हूँ
इंतज़ार की ठण्ड है
न जाती है
न कम होती है....
ठण्ड
अब दर्द बन रही है
इस से पहले
कि मैं रूह बचाने को
जिस्म उतार के
अलाव में डाल दूँ

चले आओ....!!




Chandni ka pairahan
Purana ho chala hai
Ghis gaya hai
Rang bhi ja chuka hai
Kitni hi raton
Aur dino ko
Tadap ke alaav mein
Daal chuki hun
Intazar ki thand hai
Na jati hai
Na kam hoti hai....
Thand
Ab dard ban rahi hai
Is se pehle
Ki main rooh bachane ko
Jism utar ke
Alaav mein dal dun

CHALE AAO....!!

बस एक बार आ जाओ...


थोडी सी बारिश
और ढेर सारा प्यार...
यही तो माँगा था न

तुमने कहा कि
तुम्हारे घर
बारिश हुई है
पर
मेरा घर आंगन
तो सूना था...
तुम्हारे बिन
और होता भी कैसा...

इस बार जब आना
तो
मेरे हिस्से की बारिश
और
मेरे हिस्से का प्यार
साथ लाना...

हम
एक दुसरे के कांधे पर
सिर रख कर
रो लेंगे...
गिले शिकवे
दूर कर लेंगे...
और बहा देंगे
तुम्हारी लायी
बारिश के साथ...

फिर
छिटका देंगे
घर के कोने कोने में
ढेर सारा प्यार...
बस एक बार आ जाओ...





Thodi si barish
aur dher sara pyar...
yahi to manga tha na

tumne kaha ki
tumhare ghar
barish hui hai
par
mera ghar angan
to soona tha...
tumhare bin
aur hota bhi kaisa...

is baar jab aana
to
mere hisse ki barish
aur
mere hisse ka pyar
saath lana...
ham
ek dusre ke kaandhe par
sir rakh kar
ro lenge...
gile shikwe
door kar lenge...
aur baha denge
tumhari layi
barish ke saath...

phir
chhitka denge
ghar ke kone kone mein
dher sara pyar...
bas ek baar aa jao...