Saturday, August 8, 2009

बूँदें!


बूँदें!
आँखों से टपकें
मिट्टी हो जाएँ।

आग से गुज़रें
आग की नज़र हो जाएँ।

रगों में उतरें तो
लहू हो जाएँ।

या कालचक्र से निकलकर
समय की साँसों पर चलती हुई
मन की सीप में उतरें
और मोती हो जाएँ.....

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